Saturday 29 December 2012

इस देश न आना लाड़ो

आज एक बाप का आंगन  खाली हो गया ,वो आँगन जंहा पर दामिनी नाम की चिड़ियाँ हमेशा गुनगुनाती , फुदकती और चहकती रहती थी .
 एक बाप की आँखों ने जहाँ उस चिड़ियाँ को बड़ा होता देखा , सपने देखे की एक दिन वह चिड़ियाँ डॉक्टर बनकर, सफ़ेद कपड़े पहनकर  उनके सामने खड़ी  होगी, वहीं वह चिड़ियाँ आज सफ़ेद कपड़े  पहनकर खड़ी  तो हैं लेकिन डॉक्टर के नही , कफ़न का .
  



जंहा एक बाप के आँखों में आंसू होते हैं अपनी बेटी को ससुराल विदा करने के , वहीं आज उस बाप के आँखों में आंसू तो है लेकिन अपनी बेटी को ससुराल के लिए विदा करने के नहीं बल्कि इस दुनियां से विदा करने के .
आज जंहा  एक माँ के आंखो में अपनी बेटी को डॉक्टर बनता देख कर ख़ुशी के आंसू होते वहीं आज उस माँ के आँखों में पश्यताप के आंसू हैं क्यों नही वो अपनी बेटी उन भेडियों से बचा पायी जिस तरह वह अपनी बेटी को 9 महीने खोक में रखकर सभी तरह की बुरी नजरो व बलाओ से बचाया करती थी .
उस माँ का केवल यही है अपनी बेटी से कहना  - इस देश न आना लाड़ो
                                                                        इस देश न आना लाड़ो
                                                                        इस देश न आना लाड़ो ....................................
हम सब लड़कियां भी कल की दामिनी बन सकते है और न बने इसीलिए जरूरी हो गया हैं न्याय मिलना .और न्याय के लिए जरुरी है आवाम की आवाज का एक होना व सशक्त होना . न्याय केवल उन दरिंदो को  सजा मिलने से पूरा नही होगा . न्याय हमे व दामिनी को तब मिलेगा जब रेपिस्ट और खुनी लोगो को अपने देश में नेता नही बनाया जायेगा .जब हमारे देश के नेता और अन्य   विभाग के कर्मचारी  ही खुनी व रेपिस्ट है तो समाज में ऐसे भेडियों  का होना बना रहेगा , जिस तरह दीवाली पर घर की पूरी तरह  सफाई की जाती है ठीक उसी तरह अब जरूरत है सरकार से लेकर पुलिश  व अन्य विभागों में सफाई की .अब पूरी तरह से सफाई करने का समय है .  आप सभी क्या कहना है ?

Tuesday 18 December 2012

पंख दे दो , मुझे उड़ना है



पंख दे दो , मुझे उड़ना है  ऐसा कहना है अठ्ठारह वर्षीय श्रेया सिंह का और केवल श्रेया की ही ये दिली तमन्ना नही है बल्कि यह तमन्ना भारत में रहने वाले करोड़ो विद्यार्थियों की है, जिनके सपनो को इंतजार हैं  की उन्हें भी पंख मिलेंगे उड़ने के लिए  .
श्रेया का यह कहना उन आला संस्थानों या कॉलेजों से है जंहा 95%  अंक के बाद भी विद्यार्थियो के लिए कॉलेज के दरवाजे बंद  है .  श्रेया सिंह ने वे सारे काम नही किये जो उसे करने चाहिए थे . उसने टेलीविज़न नही देखा , दोस्तों के साथ बाहर मौज -मस्ती नही करने गयी , घर से बाहर निकलना बंद कर दिया , हर रोज 8 घंटे पढाई की और 12वीं  की क्लास में 95% अंक हासिल किये . श्रेया को विश्वाश था कि उसके शानदार अंको की वजह से उसे दिल्ली विश्व विद्यालय के टॉप कॉलेज में दाखिला मिल जायेगा .
लेकिन श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स ने जब अपनी कट ऑफ लिस्ट जारी  की और 98.80% की बेहद ऊँची सीमा बांध दी तो वह परेशान हो गयी . श्रेया ने निराश होकर ऐसे कॉलेज में दाखिला लेना पसंद किया जंहा पर उसे अपना पंसदीदा विषय पढ़ने  के लिए मिल जाये .इस तरह हताश होने वाली वह इकलौती  विधार्थी नही थी . ऐसे और भी विधार्थी है जो हताश हो चुके है इस शिक्षा प्रणाली से .
 एक ओर  जंहा शिक्षा के मानक आसान कर  दिए गये है वहीं अंक बढ़ा दिए गये है . अब तो देखा- देखी  में अन्य बोर्डों ने भी सीबीएससी बोर्ड की तरह अंधे होकर अंक देने  शुरू  कर दिए . परिक्षा का अब कोई महत्व ही नही रह गया है अब तो होनहार विधार्थियों  के साथ -साथ कमजोर विधार्थियों के भी 75% अंक देखने को मिल जाते है .परीक्षा  में मिलने वाले अंक , अंक न होकर मंदिर में मिलने वाला  प्रसाद हो गया है . सबसे बड़ी बात तो यह है की आज स्कूल और कॉलेज ऐसे खुल रहे है जैसे नुक्कड़ -नुक्कड़ पर पान - मसाले के दुकान खुली  होती है जिनमें  से अधिकतर कॉलेज व स्कूल मान्यता प्राप्त नही है . बची -कुची कसर  उच्च  शिक्षा में लगी आरक्षण  व्यवस्था पूरी कर रही है . दिन बर दिन शिक्षा व्यवस्था खोखली होती जा रही है .
राजनैतिक पार्टियाँ सत्ता में आने के लिए जनता से वादा करती है कि बेरोजगारी भत्ता देगीं , 600 रूपए देंगी जिससे पूरे परिवार का पेट भर जायेगा , 6 गैस सिलेंडर सब्सिडी की जगह पर 9 गैस सिलेंडर पर सब्सिडी देंगी  लेकिन कोई पार्टी ये नही कहती है की जब वह  सत्ता में आयेगी  तो शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करेगी , उसे खोखला होने से बचायेगी , शिक्षा में लगे आरक्षण को हटायेगी .




 95% लाने  के बाद जंहा कुछ विधार्थी अपना बचपन खो देते है तो वहीं दूसरी ओर कुछ विधार्थी अपना जीवन .

कोई चारा नही 




अप्रैल 2010 में मुंबई के 18 वर्षीय आंसू सिंह ने कथित तौर पर इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वह सिंगापुर  के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेना चाहता था .

2009 में 12 वीं कक्षा में 92 % अंक पाने  वाली एक अन्य  छात्रा ने आत्महत्या कर ली .वह  11 वीं मंजिल  बाल्कनी  से  इसलिए कूद गयी  क्योंकि वह  अपने पसंदीदा कॉलेज लेडी श्री राम कॉलेज में दाखिला नही ले सकी .


 95% लाने  के बाद भी उनके सपनो को पंख नही दे पते है, ये आला संस्थान .
  

95% लाने के बाद भी किसी माँ की गोद उजड़ जाती , कोई बाप अपना बच्चा खो देता है तो कोई अपना दोस्त खो देता है .

अगर हाल ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नही जब इतिहास खुद को दोहरायेगा .पुराना भारत पूरी दुनियाँ को फिर से देखने को मिलेगा माता -पिता  अपने बच्चो को पढने के लिए नही भेंजेगे .

अगर देखा जाये आज वो माता -पिता जो अपने बच्चो को पढ़ने  के लिए स्कूल  नही भेंजते सही करते क्योंकि कम से कम उनके बच्चे उनके पास तो है . 

दोस्तों आपको क्या लगता है की ये 95% अंक से किसी बच्चें के अंदर छुपे गुणों  को पहचाना जा सकता है .क्योंकि कहा जाता  है कि हर इंसान में कोई न कोई गुण जरुर होता है   

Friday 14 December 2012

आकांक्षा

आकांक्षा  यह शब्द एकमात्र  शब्द नही है . आकांक्षा यानि इच्छा , जो इंसान के पैदा होने के साथ से ही उसका दामन थाम लेती हैं और  मरने के बाद ही दामन छोड़ती हैं . 
अगर  आकांक्षा  को  हम  अपनी परछाई  कहें  तो गलत  नही  होगा क्योंकि परछाई  की तरह आकांक्षा भी  कभी  साथ नही  छोड़ती  हैं . आकांक्षा शब्द अपने आप में ही अत्यंत  महत्वपूर्ण हैं . आकांक्षा  इंसान  को  पंख  देती  हैं  अपना जीवन जीने  के लिए .  इस दुनिया रूपी  नीले आसमान  में अपने ख्वाबो  रूपी पंख से  उड़ने  का  मौका  देती हैं .

 आकांक्षा  ही  तो हैं  जो एक  आठ  माह  के बच्चे  को चलना  सिखाती हैं . आकांक्षा ही तो हैं  जो बच्चे  से  पहली बार माँ  शब्द बुलवाता हैं , आकांक्षा  ही तो हैं जो एक माँ  अपने  बच्चे  के मुख से माँ शब्द सुनने के लिए दिन बर दिन बेचैन  रहती हैं .  





इस संसार में ऐसा कौन है जो इस आकांक्षा शब्द को न जानता हो न महसूस करता हो . इस संसार में ऐसा कौन हैं जो किसी वस्तु की आकांक्षा न रखता हो . एक माँ - बाप की आकांक्षा अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य की , विधार्थियों  की  परीक्षा में अच्छे अकं हासिल करके एक अच्छी नौकरी पाने की आकांक्षा , कांग्रेस की दुबारा सत्ता पानी आकांक्षा नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री  बनने की या फिर वैज्ञानिको की दूसरे ग्रह पैर जीवन ढूढने की आकांक्षा .
अगर यह  कहा  जाये कि  आकांक्षा ही एक ऐसी वजह हैं जिसकी वजह से मानव या फिर हम अपना जीवन जीना  चाहते हैं तो कहना गलत नही होगा .
आकांक्षा ही तो वह चीज है जो मानव को अच्छे व बुरे गुण ग्रहण करने के लिए प्रेरित करता हैं .हम कहते है कि  वह इंसान बुरा है जबकि इंसान कभी बुरा नही होता हैं वो तो उसके अन्दर  के गुण बुरे होते हैं .जब किसी इंसान की  आकांक्षा पूरी हो जाती  है तब वह संतुष्ट  हो जाता और जब वही आकांक्षा पूरी नही होती तब उसे पूरा करने के लिए  बुरे गुणों तक को ग्रहण करना पंसद करता हैं . 
 अभिजीत जो 5 साल का है . उसके घर में कुछ मेहमान आने वाले थे . उसकी मम्मी ने मेहमानों के स्वागत के लिए अच्छे  अच्छे पकवान बनाएं और बाहर से मिठाई भी मंगवाई . अभिजीत को मिठाई बहुत पंसद थी जिसकी वजह  से उसने अपनी मम्मी से मिठाई मांगी लेकिन उसकी मम्मी ने देने से मना कर दिया .  अभिजीत  ने मम्मी से छुपकर मिठाई को चुराकर खाया . ये केवल अभिजीत की कहानी नही हैं हम सब बचपन में यही किया करते थे . अभिजीत की आकांक्षा केवल मिठाई खाने की थी , मांगने से नही मिली तो चुराकर खाई . इससे पता चलता है की इंसान अपनी आकांक्षा को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकता है
.
 आकांक्षा एक तरह से भूखे पेट भजन न होए गोपाला की कहावत की तरह है जिस प्रकार इंसान भूखे पेट नही रह सकता  है ठीक उसी प्रकार इंसान अपनी आकांक्षाओं को पूरी किये बिना नही रह सकता है . इंसान अपनी आकांक्षा को पूरा  किये बिना नही रह सकता है . इंसान अपनी आकांक्षा को पूरा करने के लिए जमीं आसंमा एक कर देता है .
आकांक्षा ही तो है जो रंक को राजा  और राजा  को रंक  बनाने में देर नही लगाता  हैं .  आकांक्षा ही तो है जिसने अभिनव बिंद्रा को ओलम्पिक में पदक दिलाया और कसब को फांसी  के फंदे तक पहुँचा दिया .
आकांक्षा जबतक आकांक्षा बनी रहती तबतक वह सबके  हितकर है लेकिन जब आकांक्षा महत्वकांक्षा बन जाती तब वह  विनाश को बुलावा  देती है . इसीलिए दोस्तों आकांक्षा रखे , महत्वकांक्षा नही .
दोस्तों यह तो मेरे विचार है ,मैं  आप सभी के विचार  जानना चाहती हुं कि  आप क्या मानते है- एक ऐसी आकांक्षा जो हमे गलत रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करे ,   जिसका परिणाम बुरा हो , हमे ऐसी आकांक्षा को पूरा करना चाहिये , ऐसी आकांक्षा रखनी चाहिए .     

Saturday 1 December 2012

.पहला पहला पोस्ट

नमस्ते दोस्तों ,
 आप सभी का  आज का  दिन मंगलमय हो . यह मेरा पहला पोस्ट है इसे स्वीकार करे .