Friday 14 December 2012

आकांक्षा

आकांक्षा  यह शब्द एकमात्र  शब्द नही है . आकांक्षा यानि इच्छा , जो इंसान के पैदा होने के साथ से ही उसका दामन थाम लेती हैं और  मरने के बाद ही दामन छोड़ती हैं . 
अगर  आकांक्षा  को  हम  अपनी परछाई  कहें  तो गलत  नही  होगा क्योंकि परछाई  की तरह आकांक्षा भी  कभी  साथ नही  छोड़ती  हैं . आकांक्षा शब्द अपने आप में ही अत्यंत  महत्वपूर्ण हैं . आकांक्षा  इंसान  को  पंख  देती  हैं  अपना जीवन जीने  के लिए .  इस दुनिया रूपी  नीले आसमान  में अपने ख्वाबो  रूपी पंख से  उड़ने  का  मौका  देती हैं .

 आकांक्षा  ही  तो हैं  जो एक  आठ  माह  के बच्चे  को चलना  सिखाती हैं . आकांक्षा ही तो हैं  जो बच्चे  से  पहली बार माँ  शब्द बुलवाता हैं , आकांक्षा  ही तो हैं जो एक माँ  अपने  बच्चे  के मुख से माँ शब्द सुनने के लिए दिन बर दिन बेचैन  रहती हैं .  





इस संसार में ऐसा कौन है जो इस आकांक्षा शब्द को न जानता हो न महसूस करता हो . इस संसार में ऐसा कौन हैं जो किसी वस्तु की आकांक्षा न रखता हो . एक माँ - बाप की आकांक्षा अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य की , विधार्थियों  की  परीक्षा में अच्छे अकं हासिल करके एक अच्छी नौकरी पाने की आकांक्षा , कांग्रेस की दुबारा सत्ता पानी आकांक्षा नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री  बनने की या फिर वैज्ञानिको की दूसरे ग्रह पैर जीवन ढूढने की आकांक्षा .
अगर यह  कहा  जाये कि  आकांक्षा ही एक ऐसी वजह हैं जिसकी वजह से मानव या फिर हम अपना जीवन जीना  चाहते हैं तो कहना गलत नही होगा .
आकांक्षा ही तो वह चीज है जो मानव को अच्छे व बुरे गुण ग्रहण करने के लिए प्रेरित करता हैं .हम कहते है कि  वह इंसान बुरा है जबकि इंसान कभी बुरा नही होता हैं वो तो उसके अन्दर  के गुण बुरे होते हैं .जब किसी इंसान की  आकांक्षा पूरी हो जाती  है तब वह संतुष्ट  हो जाता और जब वही आकांक्षा पूरी नही होती तब उसे पूरा करने के लिए  बुरे गुणों तक को ग्रहण करना पंसद करता हैं . 
 अभिजीत जो 5 साल का है . उसके घर में कुछ मेहमान आने वाले थे . उसकी मम्मी ने मेहमानों के स्वागत के लिए अच्छे  अच्छे पकवान बनाएं और बाहर से मिठाई भी मंगवाई . अभिजीत को मिठाई बहुत पंसद थी जिसकी वजह  से उसने अपनी मम्मी से मिठाई मांगी लेकिन उसकी मम्मी ने देने से मना कर दिया .  अभिजीत  ने मम्मी से छुपकर मिठाई को चुराकर खाया . ये केवल अभिजीत की कहानी नही हैं हम सब बचपन में यही किया करते थे . अभिजीत की आकांक्षा केवल मिठाई खाने की थी , मांगने से नही मिली तो चुराकर खाई . इससे पता चलता है की इंसान अपनी आकांक्षा को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकता है
.
 आकांक्षा एक तरह से भूखे पेट भजन न होए गोपाला की कहावत की तरह है जिस प्रकार इंसान भूखे पेट नही रह सकता  है ठीक उसी प्रकार इंसान अपनी आकांक्षाओं को पूरी किये बिना नही रह सकता है . इंसान अपनी आकांक्षा को पूरा  किये बिना नही रह सकता है . इंसान अपनी आकांक्षा को पूरा करने के लिए जमीं आसंमा एक कर देता है .
आकांक्षा ही तो है जो रंक को राजा  और राजा  को रंक  बनाने में देर नही लगाता  हैं .  आकांक्षा ही तो है जिसने अभिनव बिंद्रा को ओलम्पिक में पदक दिलाया और कसब को फांसी  के फंदे तक पहुँचा दिया .
आकांक्षा जबतक आकांक्षा बनी रहती तबतक वह सबके  हितकर है लेकिन जब आकांक्षा महत्वकांक्षा बन जाती तब वह  विनाश को बुलावा  देती है . इसीलिए दोस्तों आकांक्षा रखे , महत्वकांक्षा नही .
दोस्तों यह तो मेरे विचार है ,मैं  आप सभी के विचार  जानना चाहती हुं कि  आप क्या मानते है- एक ऐसी आकांक्षा जो हमे गलत रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करे ,   जिसका परिणाम बुरा हो , हमे ऐसी आकांक्षा को पूरा करना चाहिये , ऐसी आकांक्षा रखनी चाहिए .     

No comments:

Post a Comment