पंख दे दो , मुझे उड़ना है ऐसा कहना है अठ्ठारह वर्षीय श्रेया सिंह का और केवल श्रेया की ही ये दिली तमन्ना नही है बल्कि यह तमन्ना भारत में रहने वाले करोड़ो विद्यार्थियों की है, जिनके सपनो को इंतजार हैं की उन्हें भी पंख मिलेंगे उड़ने के लिए .
श्रेया का यह कहना उन आला संस्थानों या कॉलेजों से है जंहा 95% अंक के बाद भी विद्यार्थियो के लिए कॉलेज के दरवाजे बंद है . श्रेया सिंह ने वे सारे काम नही किये जो उसे करने चाहिए थे . उसने टेलीविज़न नही देखा , दोस्तों के साथ बाहर मौज -मस्ती नही करने गयी , घर से बाहर निकलना बंद कर दिया , हर रोज 8 घंटे पढाई की और 12वीं की क्लास में 95% अंक हासिल किये . श्रेया को विश्वाश था कि उसके शानदार अंको की वजह से उसे दिल्ली विश्व विद्यालय के टॉप कॉलेज में दाखिला मिल जायेगा .
लेकिन श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स ने जब अपनी कट ऑफ लिस्ट जारी की और 98.80% की बेहद ऊँची सीमा बांध दी तो वह परेशान हो गयी . श्रेया ने निराश होकर ऐसे कॉलेज में दाखिला लेना पसंद किया जंहा पर उसे अपना पंसदीदा विषय पढ़ने के लिए मिल जाये .इस तरह हताश होने वाली वह इकलौती विधार्थी नही थी . ऐसे और भी विधार्थी है जो हताश हो चुके है इस शिक्षा प्रणाली से .
एक ओर जंहा शिक्षा के मानक आसान कर दिए गये है वहीं अंक बढ़ा दिए गये है . अब तो देखा- देखी में अन्य बोर्डों ने भी सीबीएससी बोर्ड की तरह अंधे होकर अंक देने शुरू कर दिए . परिक्षा का अब कोई महत्व ही नही रह गया है अब तो होनहार विधार्थियों के साथ -साथ कमजोर विधार्थियों के भी 75% अंक देखने को मिल जाते है .परीक्षा में मिलने वाले अंक , अंक न होकर मंदिर में मिलने वाला प्रसाद हो गया है . सबसे बड़ी बात तो यह है की आज स्कूल और कॉलेज ऐसे खुल रहे है जैसे नुक्कड़ -नुक्कड़ पर पान - मसाले के दुकान खुली होती है जिनमें से अधिकतर कॉलेज व स्कूल मान्यता प्राप्त नही है . बची -कुची कसर उच्च शिक्षा में लगी आरक्षण व्यवस्था पूरी कर रही है . दिन बर दिन शिक्षा व्यवस्था खोखली होती जा रही है .
राजनैतिक पार्टियाँ सत्ता में आने के लिए जनता से वादा करती है कि बेरोजगारी भत्ता देगीं , 600 रूपए देंगी जिससे पूरे परिवार का पेट भर जायेगा , 6 गैस सिलेंडर सब्सिडी की जगह पर 9 गैस सिलेंडर पर सब्सिडी देंगी लेकिन कोई पार्टी ये नही कहती है की जब वह सत्ता में आयेगी तो शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करेगी , उसे खोखला होने से बचायेगी , शिक्षा में लगे आरक्षण को हटायेगी .
95% लाने के बाद जंहा कुछ विधार्थी अपना बचपन खो देते है तो वहीं दूसरी ओर कुछ विधार्थी अपना जीवन .
कोई चारा नही
अप्रैल 2010 में मुंबई के 18 वर्षीय आंसू सिंह ने कथित तौर पर इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वह सिंगापुर के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेना चाहता था .
2009 में 12 वीं कक्षा में 92 % अंक पाने वाली एक अन्य छात्रा ने आत्महत्या कर ली .वह 11 वीं मंजिल बाल्कनी से इसलिए कूद गयी क्योंकि वह अपने पसंदीदा कॉलेज लेडी श्री राम कॉलेज में दाखिला नही ले सकी .
95% लाने के बाद भी किसी माँ की गोद उजड़ जाती , कोई बाप अपना बच्चा खो देता है तो कोई अपना दोस्त खो देता है .
अगर हाल ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नही जब इतिहास खुद को दोहरायेगा .पुराना भारत पूरी दुनियाँ को फिर से देखने को मिलेगा माता -पिता अपने बच्चो को पढने के लिए नही भेंजेगे .
अगर देखा जाये आज वो माता -पिता जो अपने बच्चो को पढ़ने के लिए स्कूल नही भेंजते सही करते क्योंकि कम से कम उनके बच्चे उनके पास तो है .
दोस्तों आपको क्या लगता है की ये 95% अंक से किसी बच्चें के अंदर छुपे गुणों को पहचाना जा सकता है .क्योंकि कहा जाता है कि हर इंसान में कोई न कोई गुण जरुर होता है
thanku
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